उत्तरकाशी: पौराणिक लोकपर्व देवलांग उत्साह और उमंग के साथ परंपरानुसार मनाया गया। अंधेरे से उजाले की ओर के प्रतीक माने जाने वाले देवलांग पर्व के मौके पर बड़ी संख्या में प्रदेशभर के साथ ही देश के विभिन्न राज्यों से लोग पर्व को देखने पहुंचे थे। मंदिर परिसर में लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा।
साठी-पानशाई थोकों के लोगों के साथ ही मेले में पहुंचे लोगों पारंपरिक लोक नृत्य और क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति में सराबोर नजर आए। सुबह करीब पांच बजे देवलांग का उत्साह और रोमांच अपने चरम पर नजर आया।
देवलांग को हाथों, डंडों और कैंचियों के सहारे उठाए जाने की प्रक्रिया के साथ ही वह पल भी नजदीक आने लगता है। इस पल हजारों लोग हर साल इंतजार करते हैं। सुबह होते ही भोर की पहली किरण के साथ ही छ: से साढ़े छः के बीच देवलांग को खड़ा कर दिया गया।
देवलांग खड़ी होने के साथ ही राजा रघुनाथ, श्री मड़केश्वर महादेव और संगटारू वीर के जयकारों से पूरा मंदिर परिसर गूंज उठा। लोगों ने श्री राजारघुनाथ का आशीर्वाद लिया और देवलांग की राख से टीका कर अपने घरों की ओर रवाना हो गए।
देवलांग पर्व की संपन्नता मड़केश्वर धाम में वहन और पूजा के बाद ही पूर्ण माना जाता है। देवलांग पर आग लगने के बाद मड़केश्वर धाम के पुजारी गौड़ ब्राह्मण गौर गांव के ग्रामीणों के साथ काफी संख्या में भक्त दर्शनार्थ मंदिर में पहुंचते हैं। वहन और पूजा होने का साथ ही इस वर्ष की देवलांग का विधिवत पूर्णता हो गई।
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