देहरादून। प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। सरकार और पंचायतीराज विभाग अगले माह जुलाई में चुनाव कराने की तैयारियों में जुटे हैं। राज्य निर्वाचन आयोग तैयारियों में जुटा है। सरकार ने प्रशासकों का कार्यकाल भी 31 जुलाई तक के लिए बढ़ाया है। ऐसे में माना जा रहा है कि सरकार चुनाव भी जुलाई माह में ही करा सकती है।
ये है बड़ी चुनौती
लेकिन, बरसात के मौसम को देखते हुए इस बार का पंचायत चुनाव चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है। एक और बड़ी चिंता इस बात की है कि चारधाम यात्रा के कारण सुरक्षा की भी चिंता बनी हुई है। चुनाव आयोग के पास पर्याप्त पुलिस बल उपलब्ध होगा या नहीं, यह भी अभी साफ नहीं है।
पहाड़ी जिलों में ये है चिंता
उत्तराखंड जैसे आपदा संभावित राज्य में जुलाई की बरसात का मतलब है, उफनती नदियां, गदेरे और मलबे से बंद सड़कें। इस स्थिति में न केवल मतदान दलों की सुरक्षित आवाजाही पर सवाल उठता है, बल्कि मतदाताओं के भी मतदान केंद्रों तक पहुंचा कठिन होगा।
इन जिलों में ज्यादा दिक्कत
बरसात में पिथौरागढ़, चमोली, उत्तरकाशी जैसे जिलों में सामान्य आवागमन तक ठप हो जाता है, ऐसे में चुनाव कराने का सीधा असर मतदान प्रतिशत पर पड़ेगा। एक और समस्या यह है कि पहाड़ के गांवों के वोटर मैदानी जिलो में बड़ी संख्या में रहते हैं। सवाल है कि क्या वो बरसात के मौसम में अपना वोट डालने गांव जा पाएंगे?
प्रशासक संभाल रहे पंचायतों की जिम्मेदारी
राज्य की ग्राम, क्षेत्र व जिला पंचायतों का कार्यकाल वर्ष 2024 में समाप्त हो चुका है। इसके बाद दो बार पंचायतों में प्रशासकों की नियुक्ति हो चुकी हैकृपहले निवर्तमान प्रतिनिधियों को और अब प्रशासनिक अधिकारियों को। ऐसे में सरकार अब और देरी नहीं करना चाहती, इसलिए बरसात में ही चुनाव कराने का निर्णय लगभग तय माना जा रहा है।
मतदान प्रतिशत पर पड़ सकता है असर
प्रदेश में अक्तूबर 2019 में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में 69.59 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया था। मैदानी जिले ऊधमसिंह नगर में 84.26 प्रतिशत, जबकि पर्वतीय जिलों में अपेक्षाकृत कम मतदान हुआ। अल्मोड़ा में 60.04ः, पौड़ी में 61.79ः और टिहरी में 61.19ः मतदान रिकॉर्ड किया गया था। इस बार बरसात में चुनाव होने से पर्वतीय क्षेत्रों में मतदान प्रतिशत और भी गिर सकता है।
चुनाव टालना नहीं चाहते आयोग और सरकार
राज्य निर्वाचन आयुक्त ने कहा, “चुनावों को बरसात के कारण बहुत अधिक समय तक टालना संभव नहीं है। सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए जिलाधिकारियों के साथ कंटीजेंसी प्लान पर चर्चा की जाएगी।”
दोहरी चुनौती
सरकार और निर्वाचन आयोग के सामने दोहरी चुनौती है। एक ओर जहां संवैधानिक प्रक्रिया को समय पर पूरा करना है। वहीं, दूसरी ओर मतदाता सुरक्षा और अधिकतम भागीदारी सुनिश्चित करना है।
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