- पहाड़ समाचार
बड़कोट, वह नगर पालिका, जहां कभी यमुना की कल-कल धारा शांति का प्रतीक हुआ करती थी। लेकिन अब, यह धारा केवल जल नहीं बहा रही, बल्कि पत्थर, धूल और नेताओं के ख्वाब भी बहा रही है। विकास की परिभाषा यहाँ नए अंदाज में लिखी जा रही है – “जहां जेसीबी, वहां तरक्की!”
पहले खनन दूर-दूर तक था, यमुना घाटी के शांत वातावरण में इसकी कोई आवाज़ नहीं थी। लेकिन, फिर आया “विकास का युग” और पहला स्टोन क्रशर राजतर के पास लगा। विरोध हुआ, लेकिन, विरोधियों को भी समझ आ गया कि पत्थरों के नीचे दबी दौलत से ज़्यादा मजबूत कुछ नहीं होता। आज वही क्रशर शान से चल रहा है, यमुना के इतने करीब कि नदी भी सोचती होगी – “यहाँ मेरा जल बहता है या किसी की तिजोरी भरती है?”
अब, कोटियाल गांव, पौंटी पुल और रवाड़ा तक – क्रशर लगे हैं। जेसीबी और पोकलैंड मशीनें दिन-रात नदी को छलनी कर रही हैं, और खनन माफिया यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि पर्यावरण सिर्फ किताबों में बचा रहे। बारिश का मौसम भी इन्हें रोक नहीं पाता, बल्कि अवैध खनन का सबसे अच्छा टाइम होता है – “नदी उफनती रहे, खनन चलता रहे!”
पुलिस? प्रशासन? खनन विभाग? अरे, ये तो बस नाम मात्र के संस्थान हैं। अधिकारी कभी-कभार बड़कोट दर्शन पर आते हैं, माथे पर शिकन लाते हैं, और फिर वैसे ही लौट जाते हैं, जैसे कि घाटी में कभी कोई समस्या थी ही नहीं। शायद उन्होंने भी सीख लिया है – “देखो, सुनो और चुप रहो!”
अब असली खेल राजनीति का है। पहले समाज सेवा होती थी – आज मुफ्त रेता, बजरी और शराब वितरण को समाज सेवा कहा जाता है। चुनावी मौसम में तो यह “सेवा” और भी तेज़ हो जाती है। लोग वोट नहीं डालते, वजन तौलते हैं – पैसा, शराब, और पत्थरों के कट्टों में!
बड़कोट के विकास मॉडल में अब एक ही नारा गूंज रहा है –“खनन से कमाई, कमाई से सत्ता, सत्ता से संरक्षण और संरक्षण से और खनन!” तो सवाल वही है – बड़कोट किस दिशा में बढ़ रहा है? जवाब स्पष्ट है – यमुना के साथ नीचे…बहुत नीचे!
The post “खनन से कमाई, कमाई से सत्ता, सत्ता से संरक्षण और संरक्षण से और खनन!” first appeared on headlinesstory.