गोप्रतिष्ठा आंदोलन पर शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने पीएम ‘मोदी की फोटो’ से सांकेतिक वार्ता

वाराणसी। ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सांकेतिक संवाद कर गोप्रतिष्ठा आंदोलन की महत्ता को लेकर एस बड़ा संदेश दिया है। इस संवाद के माध्यम से उन्होंने गौसंरक्षण और सनातनी मूल्यों के प्रति जागरूकता बढ़ाने काम किया। हालांकि, यह बातचीत प्रतीकात्मक थी, लेकिन इसके गहरे निहितार्थ हैं।

गौसंरक्षण के प्रति बढ़ती चिंता

देश में गौसंरक्षण को लेकर चिंताओं का बढ़ना स्वाभाविक है। गोवंश का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि आर्थिक और सांस्कृतिक भी है। हिंदू धर्म में गौमाता को पूजनीय माना गया है, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में उनकी सुरक्षा और संरक्षण को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।

शंकराचार्य ने इस संवाद के माध्यम से गौसंरक्षण को राष्ट्रहित से जोड़ने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि गौमाता केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए कल्याणकारी हैं। वे भारतीय कृषि, पर्यावरण और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, इसलिए उनका संरक्षण न केवल धर्म का विषय है, बल्कि यह सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से भी अनिवार्य है।

गोप्रतिष्ठा आंदोलन का महत्व

गोप्रतिष्ठा आंदोलन के तहत गौमाता के सम्मान, सुरक्षा और उनके धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व को पुनर्स्थापित करने की मांग की जा रही है। इस आंदोलन का उद्देश्य केवल गौहत्या पर प्रतिबंध तक सीमित नहीं है, बल्कि गौशालाओं की स्थिति सुधारना, गोवंश के पालन-पोषण को प्रोत्साहित करना और गो-उत्पादों (गौदुग्ध, गौमूत्र, गोबर) को भारतीय अर्थव्यवस्था में पुनः महत्वपूर्ण स्थान दिलाना भी है।

शंकराचार्य महाराज लंबे समय से इस विषय पर मुखर रहे हैं और इस दिशा में राष्ट्रव्यापी चेतना जागृत करने का प्रयास कर रहे हैं। उनका मानना है कि जब तक गौसंरक्षण को राष्ट्रीय नीति का हिस्सा नहीं बनाया जाता, तब तक इस दिशा में सार्थक बदलाव संभव नहीं होगा।

गौसंरक्षण और सरकार की भूमिका

गौसंरक्षण को लेकर सरकार की भूमिका भी अहम हो जाती है। विभिन्न राज्यों में गौहत्या पर प्रतिबंध के कानून लागू हैं, लेकिन इनका सख्ती से पालन नहीं हो पाता। कई स्थानों पर गौशालाओं की दुर्दशा देखने को मिलती है, और निराश्रित गायें सड़कों पर भूख-प्यास से तड़पती नजर आती हैं।

शंकराचार्य ने प्रधानमंत्री मोदी से सांकेतिक संवाद के माध्यम से यह संदेश दिया कि गौसंरक्षण को केवल आस्था तक सीमित न रखकर इसे कानूनी और प्रशासनिक स्तर पर भी प्रभावी बनाया जाए। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि यदि सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठाती है, तो इससे सनातन संस्कृति और भारतीय समाज को एक नई दिशा मिल सकती है।

संस्कृति और राष्ट्रहित से जुड़ा विषय

गौसंरक्षण केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा मुद्दा नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपरा का अभिन्न अंग है। इतिहास गवाह है कि जब-जब गौसंरक्षण कमजोर हुआ, तब-तब समाज में अस्थिरता आई। इसलिए, यह आवश्यक है कि सरकार और समाज मिलकर इस दिशा में ठोस कदम उठाएं। शंकराचार्य का यह सांकेतिक संवाद केवल प्रतीकात्मक नहीं था, बल्कि यह पूरे समाज के लिए एक संदेश था कि गौसंरक्षण को अब टालने योग्य मुद्दा नहीं माना जा सकता। गौमाता का सम्मान, उनकी सुरक्षा और उनके धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व को पुनः स्थापित करना समय की मांग है।

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