घनश्याम दुबे : एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व

घनश्याम दुबे: एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व और उनकी विरासत

महाराष्ट्र के पूर्व विधान परिषद सदस्य घनश्याम दुबे के निधन से सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक क्षेत्र को अपूरणीय क्षति हुई है। घनश्याम दुबे ने समाज को नई दिशा देने के लिए हमेशा संवाद और पहल का रास्ता अपनाया। वे उत्तर भारतीय महासंघ एवं भारतीय विकास संस्थान के संस्थापक थे और उत्तर भारतीय समुदाय की आवाज़ को बुलंद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

पंडित घनश्याम दुबे का परिवार भारतीय समाज और खेल में भी अपनी धरोहर रखता है। वे प्रसिद्ध राजनारायण दुबे के पुत्र थे, जो भारतीय कुश्ती जगत के पथप्रदर्शक के रूप में विख्यात थे। उनके परदादा ब्रह्मदेव दुबे ने पुणे में चाफेकर बंधुओं के अखाड़े का प्रबंधन किया था।

शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाते हुए सुरियावां का पहला इंटर कॉलेज और डिग्री कॉलेज स्थापित किया। वे घनश्याम दुबे महाविद्यालय और सेवाश्रम इंटर कॉलेज के अध्यक्ष और ट्रस्टी थे। उन्होंने सुरियावां में पहला कोल्ड स्टोरेज स्थापित कर क्षेत्र के व्यापार और रोजगार में अभूतपूर्व योगदान दिया। घनश्याम दुबे के दादा, सेठ बद्रीप्रसाद दुबे, भारत के प्रमुख व्यवसायियों में से एक थे, जिन्होंने 1931 में भारत की पहली टॉकी फिल्म ‘आलम आरा’ को वित्तीय सहायता प्रदान की थी।

घनश्याम दुबे का परिवार भी समाज सेवा और राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहा है। उनके पुत्र, कैप्टन योगेश दुबे, वर्तमान में पश्चिम उपनगर में भाजपा के साथ सक्रिय रूप से जुड़े हैं। राजनीति में उनकी भागीदारी घनश्याम दुबे की विरासत को आगे बढ़ाने का प्रयास है। वहीं, उनकी पुत्री, डॉ. सुनिता दुबे, डॉक्टर समुदाय को न्याय दिलाने और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए राज्य और केंद्र सरकार के साथ लगातार संघर्ष कर रही हैं। उन्होंने मुझसे उनकी पुत्री और रिश्तेदारों से मुलाकात करवाई। ताकि सुनिता को मेरा मार्गदर्शन मिलता रहे और वह अपने मिशन में कामयाब हो।

भारतीय सदविचार मंच द्वारा पवित्र सावन मास में दहिसर पूर्व स्थित संस्था संकुल में स्थापित भगवान सदविचारेश्वर महादेव मंदिर में आयोजित महारुद्राभिषेक एव्ं महाप्रसाद कार्यक्रम में उनसे मुलाकात होती रहती थी। सामाजिक और धार्मिक कार्यक्रमों में उनसे मुलाकात होती रहती थी। पुर्वांचल खबरें के संपादक रविंद्र दुबे द्वारा आयोजित वार्षिकोत्सव में घनश्याम दुबे और मैंने मंच भी साझा किया है।

घनश्याम दुबे न केवल उत्तर भारतीय समुदाय को संगठित किया बल्कि समाज के लिए नए मानक भी स्थापित किए। उनके कार्य और विचार आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बने रहेंगे। उनकी विरासत उनके परिवार द्वारा जारी है, जो सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में सक्रिय रहकर समाज की भलाई के लिए कार्य कर रहे हैं। घनश्याम दुबे को श्रद्धांजलि देते हुए हम उनके योगदान को नमन करते हैं।

अनिल गलगली

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