त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव 2025 : भाजपा के जीत के दावों की कांग्रेस ने खोली पोल, गिनाई बड़े चेहरों की हार

उत्तराखंड में संपन्न हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव 2025 के नतीजों ने प्रदेश की सियासत को झकझोर दिया है। एक ओर भाजपा ने इन चुनावों को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की नीतियों की जीत बताते हुए “भगवामय प्रदेश” का दावा किया है, तो दूसरी ओर कांग्रेस ने इन दावों की वास्तविकता को चुनौती देते हुए भाजपा के कई दिग्गज नेताओं और उनके परिजनों की हार को जनता के स्पष्ट संकेत के रूप में परिभाषित किया है। इस चुनाव ने साफ कर दिया है कि भले ही पार्टी कार्यालय में मिठाई बंट रही हो, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि जनता ने सत्ताधारी दल को सन्देश दे दिया है, “काम दिखाओ, चेहरा नहीं।”

भाजपा के दिग्गजों की हार

त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव भले ही गैर-दलीय होते हैं, लेकिन इसमें विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष समर्थन वाले उम्मीदवार मैदान में थे। भाजपा ने इसे पूरी तरह से एक राजनीतिक अभियान में बदल दिया था, लेकिन उसके कई शीर्ष नेताओं के परिजनों और पूर्व पदाधिकारियों को करारी हार मिली:

  • भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट का गृह जनपद चमोली में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा।

  • उत्तरकाशी में पूर्व विधायक मालचंद की पुत्री और पूर्व जिलाध्यक्ष सत्येंद्र राणा चुनाव हार गए।

  • टिहरी में पूर्व प्रमुख नीलम बिष्ट और पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष कंचन गुनसोला की बहू चुनाव में पराजित हुईं।

  • विधायक शक्ति लाल शाह के दामाद भी चुनाव हार गए।

  • पौड़ी में विधायक दिलीप रावत की पत्नी को पराजय मिली।

  • नैनीताल में विधायक सरिता आर्य के पुत्र की हार ने चर्चा बटोरी।

  • पूर्व मंत्री राजेंद्र भंडारी की पत्नी भी चमोली से चुनाव हार गईं— खास बात यह कि वे भाजपा में शामिल हो चुकी थीं।

  • चंपावत में पूर्व विधायक पूरन सिंह फर्त्याल की बेटी, पूर्व प्रमुख लक्ष्मण सिंह के बेटे, भतीजे और बहुएं चुनाव नहीं जीत सकीं।

  • कई पूर्व जिला अध्यक्ष और मंडल स्तर के नेता भी पराजित हुए।

कांग्रेस ने इन परिणामों को अपने पक्ष में बताते हुए कहा कि भाजपा के पास जश्न मनाने का नैतिक अधिकार नहीं है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा और उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने कहा कि भाजपा सिर्फ आतिशबाजी कर रही है, जबकि मैदान में उनके अपने चेहरे जमींदोज हो गए हैं। ये जनादेश सत्ता के दंभ और प्रचार की राजनीति के खिलाफ है। कांग्रेस के अनुसार, इन चुनावों ने संकेत दिया है कि प्रदेश की जनता 2027 की ओर बदलाव का मन बना चुकी है।

पंचायत चुनावों में भाजपा ने जिस तरह विधानसभा जैसी रणनीति अपनाई, वह उसके खिलाफ गया। पार्टी की “टॉप डाउन” अप्रोच में स्थानीय मुद्दों और व्यक्तिगत प्रभाव की अनदेखी की गई। त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में व्यक्ति का सामाजिक जुड़ाव, स्थानीय कार्य, ईमानदारी और जनसंपर्क ही निर्णायक कारक होते हैं—not party tag. इन चुनावों में कई जगह भाजपा कार्यकर्ता आपस में ही भिड़ते नजर आए, जिससे अंदरूनी फूट और असंतोष उजागर हुआ। सिर्फ पोस्टर, बैनर और मीडिया प्रचार पंचायत चुनाव में काम नहीं करते—यह बात भाजपा को समझनी होगी।

कांग्रेस को इन परिणामों से मनोबल मिला है। संगठन को लंबे समय बाद कुछ ऐसा मिला है, जिसे “जनता की स्वीकृति” कहा जा सकता है। हालांकि, कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिए कि जीत की ओर यात्रा स्थिर संगठन, स्पष्ट दृष्टिकोण और लगातार जमीनी संपर्क से होती है। य

पंचायत चुनाव न सही, लेकिन इसके नतीजे साफ तौर पर संकेत कर रहे हैं कि सत्ता विरोधी रुझान जमीनी स्तर पर पनप रहा है। भाजपा के प्रभावशाली चेहरे अब अपराजेय नहीं रहे और प्रदेश की राजनीति एक निर्णायक मोड़ पर है। 2027 में कौन जीतेगा, यह अभी दूर की बात है, लेकिन आज की सच्चाई यह है कि भाजपा को आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता है और कांग्रेस को आत्मविकास की।

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