पुरोला : रवांल्टी लोक भाषा की यात्रा आज लगातार आगे बढ़ रही है। लेकिन, यात्रा कब शुरू हुई, यह जानना जरूरी है। आज के ही दिन यानि 7 जनवरी सन् 1995 ई को रवांल्टी की पहली कविता ‘दरवालु’ का प्रकाशन देहरादून से प्रकाशित होने वाले पत्र ‘जनलहर’ में उसके हिन्दी अनुवाद (सोबन राणा) के साथ हुआ था।
इसके बाद डॉ. गजेन्द्र बटोही जी एवं महेन्द्र ध्यानी जी के संपादन में प्रकाशित ‘उड़ घुघुती उड़'(उतराखण्डी भाषाओं का कविता संग्रह) में इसे स्थान मिला फिर सुप्रसिद्ध चित्रकार बी मोहन नेगी जी ने इस पर कविता पोस्टर बनाकर अनेक स्थानों पर प्रदर्शन किया।
आज रवांल्टी कविता की लेखन यात्रा अपने 40 वर्ष पूरे करने जा रही है।सभी रवांल्टी लोकभाषा प्रेमियों को हार्दिक बधाई व ढेर सारी शुभकामनाएं।
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