राजनीति में वंशवाद: देश में राजनीतिक परिवारों से हैं 21% सांसद, विधायक और MLC

नई दिल्ली: एक नए विश्लेषण के अनुसार, भारत में अभी भी वंशवाद की राजनीति गहरी जड़ें जमाए हुए है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और नेशनल इलेक्शन वॉच (न्यू) की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि भारत के मौजूदा 5204 सांसदों, विधायकों और विधान परिषद सदस्यों (एमएलसी) में से 1107 (21%) का संबंध राजनीतिक परिवारों से है।

हत्वपूर्ण बातें

  • लोकसभा में सबसे अधिक वंशवाद: लोकसभा में वंशवादी पृष्ठभूमि वाले सदस्यों का प्रतिशत सबसे अधिक है, जो 31% है। इसके बाद राज्यसभा में 21% और राज्य विधानसभाओं में 20% है।
  • राज्य-वार स्थिति: संख्या के मामले में उत्तर प्रदेश (141), महाराष्ट्र (129) और बिहार (96) सबसे आगे हैं। वहीं, अनुपात के मामले में आंध्र प्रदेश (34%) और महाराष्ट्र (32%) में वंशवाद का बोलबाला सबसे ज्यादा है।
  • पार्टी-वार विश्लेषण: राष्ट्रीय दलों में, कांग्रेस (32%) में वंशवादी प्रतिनिधित्व सबसे अधिक है, जबकि भाजपा (18%) और सीपीआई-एम (8%) में यह काफी कम है।
  • क्षेत्रीय दलों में स्थिति: क्षेत्रीय दलों में, एनसीपी-शरदचंद्र पवार (42%) और जेकेएनसी (42%) में वंशवाद की दर सबसे अधिक है।

क्या है वंशवाद की राजनीति?

रिपोर्ट के अनुसार, वंशवाद की राजनीति वह है जहाँ राजनीतिक शक्ति एक ही परिवार के सदस्यों के बीच रहती है। यह अक्सर पारिवारिक नाम, धन और नेटवर्क का उपयोग करके एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होती है।

एडीआर ने यह विश्लेषण उम्मीदवारों द्वारा चुनाव आयोग को दिए गए हलफनामों, ऐतिहासिक अभिलेखों और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारियों के आधार पर किया है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि जिन राजनेताओं के परिवार के सदस्य पूर्व में निर्वाचित पदों पर रहे हैं, उन्हें वंशवादी माना गया है।

यह रिपोर्ट दर्शाती है कि लोकतांत्रिक भारत में, भले ही राजशाही खत्म हो गई हो, लेकिन सत्ता के गलियारों में अभी भी ‘राजवंशों’ का प्रभाव कायम है।

यह रही आपकी खबर का पुनर्लेखन:


भारतीय राजनीति में वंशवाद का बोलबाला: 21% सांसद, विधायक और एमएलसी राजनीतिक परिवारों से

नई दिल्ली: एक नए विश्लेषण में सामने आया है कि भारत के लोकतंत्र में वंशवाद की जड़ें अभी भी मजबूत हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और नेशनल इलेक्शन वॉच (न्यू) की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश के 21% वर्तमान सांसद, विधायक और विधान परिषद सदस्य (एमएलसी) राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले परिवारों से आते हैं। यह विश्लेषण भारत के कुल 5204 मौजूदा निर्वाचित प्रतिनिधियों के डेटा पर आधारित है।


मुख्य आंकड़े: एक नज़र में

  • कुल आंकड़ा: विश्लेषण किए गए 5204 सदस्यों में से 1107 (21%) वंशवादी हैं।
  • लोकसभा में सबसे अधिक: लोकसभा में यह प्रतिशत सबसे ज्यादा, 31% है, जबकि राज्य विधानसभाओं में यह 20% है।
  • राज्यवार वर्चस्व:
    • संख्या के हिसाब से उत्तर प्रदेश (141), महाराष्ट्र (129) और बिहार (96) शीर्ष पर हैं।
    • आनुपातिक रूप से आंध्र प्रदेश (34%) और महाराष्ट्र (32%) में वंशवादी प्रतिनिधित्व सबसे अधिक है।
  • पार्टी के हिसाब से:
    • कांग्रेस (32%) में वंशवाद की दर सबसे अधिक है।
    • भाजपा (18%) में यह काफी कम है।
    • क्षेत्रीय दलों में एनसीपी-शरदचंद्र पवार (42%) और वाईएसआरसीपी (38%) जैसी पार्टियों में वंशवाद का गहरा प्रभाव है।

वंशवाद: क्यों और कैसे?

रिपोर्ट के मुताबिक, वंशवादी राजनीति का मतलब है कि राजनीतिक शक्ति एक ही परिवार में केंद्रित रहती है, जहां एक ही परिवार के कई सदस्य महत्वपूर्ण राजनीतिक पदों पर रहते हैं। यह अक्सर स्थापित पारिवारिक नाम, धन और नेटवर्क के कारण होता है। हालांकि यह पार्टी में स्थिरता ला सकता है, लेकिन यह योग्यता और निष्पक्ष प्रतिनिधित्व के बारे में गंभीर सवाल भी खड़े करता है।

एडीआर ने इस रिपोर्ट को उम्मीदवारों के हलफनामे, ऐतिहासिक रिकॉर्ड और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी के आधार पर तैयार किया है। इससे पता चलता है कि भारत में लोकतंत्र मजबूत होने के बावजूद, राजनीतिक शक्ति का केंद्रीकरण कुछ चुनिंदा परिवारों तक ही सीमित है।

तालिका: वंशवादी प्रतिनिधित्व का राष्ट्रीय अवलोकन

सदन का प्रकार विश्लेषण किए गए कुल सदस्य वंशवादी पृष्ठभूमि वाले सदस्य वंशवादी %
राज्य विधानसभा (विधायक) 4091 816 20%
लोकसभा (सांसद) 543 167 31%
राज्यसभा (सांसद) 224 47 21%
विधान परिषद (एमएलसी) 346 77 22%
कुल 5204 1107 21%

पार्टीवार विश्लेषण: राष्ट्रीय दल

पार्टी विश्लेषण किए गए सदस्य वंशवादी पृष्ठभूमि वाले सदस्य वंशवादी %
कांग्रेस 32%
भाजपा 18%
माकपा 8%
अन्य 20%

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