रायपुर और डोईवाला में कांग्रेस का जोरदार प्रदर्शन, फ्रीज जोन हटाने की मांग
देहरादून, 10 फरवरी 2025: रायपुर और डोईवाला विधानसभा क्षेत्र के कई गांवों को फ्रीज जोन से मुक्त करने की मांग को लेकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं और स्थानीय जनता ने आज जिलाधिकारी कार्यालय पर जोरदार प्रदर्शन किया। उन्होंने मुख्यमंत्री उत्तराखंड सरकार को ज्ञापन भेजकर इस क्षेत्र से फ्रीज जोन हटाने की अपील की।
कांग्रेस कार्यकर्ताओं और प्रदर्शनकारियों का कहना है कि रांझावाला, नथुवावाला, नकरौंदा, बालावाला, तुनवाला, मियांवाला, रायपुर, सौडासरोली, भोपालपानी, कालीमाटी, बढ़ासी, हर्रावाला और कुआंवाला जैसे इलाकों को 22 मार्च 2023 को विधानसभा परिसर और सरकारी कार्यालय भवनों के निर्माण के लिए फ्रीज जोन घोषित किया गया था। हालांकि, दो साल से ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद न तो इस क्षेत्र को फ्रीज जोन से मुक्त किया गया और न ही कोई महायोजना तैयार की गई।
फ्रीज जोन घोषित होने से रुका विकास
गौरतलब है कि 13 मार्च 2023 को गैरसैंण कैबिनेट के फैसले के तहत अपर मुख्य सचिव आनंद वर्धन ने 22 मार्च 2023 को इस क्षेत्र को फ्रीज जोन घोषित करने का आदेश जारी किया था। इस आदेश के तहत इस क्षेत्र में कोई भी निर्माण या विकास कार्य तब तक प्रतिबंधित रहेगा जब तक महायोजना तैयार नहीं हो जाती।
इसके लिए ग्लोबल मैकेंजी एजेंसी को 06 माह के भीतर मास्टर प्लान तैयार करने का कार्य सौंपा गया था। लेकिन डेढ़ साल बीत जाने के बाद भी महायोजना पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
महायोजना का उद्देश्य और प्रशासनिक असफलता
रायपुर में स्पोर्ट्स कॉलेज से सटी 850 बीघा भूमि को विधानसभा परिसर के लिए चिन्हित किया गया था, लेकिन अभी तक आवासीय भवनों और सरकारी कार्यालयों के लिए भूमि चिह्नित नहीं हो सकी।
रायपुर क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम, राज्य स्तरीय स्पोर्ट्स कॉलेज, ऑर्डिनेंस फैक्ट्री, ऑप्टो इलेक्ट्रॉनिक्स, आईआरडी, डीएएल, डीआरडीओ जैसे प्रमुख रक्षा संस्थान, मालदेवता पर्यटन स्थल और जौलीग्रांट अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा मार्ग स्थित हैं। इसके बावजूद, देहरादून शहर से जोड़ने वाली मुख्य सड़कें तंग और जर्जर हालत में हैं, जिन्हें इस महायोजना में शामिल किया जाना चाहिए।
2012 में मिली थी केंद्र की सैद्धांतिक स्वीकृति
महायोजना के लिए केंद्र सरकार ने वर्ष 2012 में सैद्धांतिक स्वीकृति प्रदान की थी। इस योजना के लिए 75 करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान किया गया था, और 59.90 हेक्टेयर भूमि को वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी मिली थी।
उत्तराखंड सरकार ने 24 करोड़ रुपये से अधिक की राशि केंद्र सरकार को जमा कराई थी। साथ ही, एलीफेंट कॉरिडोर के तहत 15.37 करोड़ रुपये कैम्पा फंड में जमा कराए गए थे।
हालांकि, राजस्व विभाग, वन विभाग, सचिवालय प्रशासन, आवास विभाग, विधानसभा और टाउन प्लानिंग विभागों के आपसी समन्वय की कमी और प्रशासनिक लापरवाही के कारण इस योजना की स्वीकृति केंद्र सरकार ने वापस ले ली। अब राज्य सरकार को इस योजना के लिए नया प्रस्ताव भेजना होगा।
क्षेत्रवासियों की बढ़ती मुश्किलें
- भवन निर्माण पर रोक: इस क्षेत्र में मकान बनाने के लिए नक्शे पास नहीं हो रहे, जिससे लोग अपने घर नहीं बना पा रहे हैं।
- निजी संपत्ति की बिक्री पर प्रतिबंध: गंभीर बीमारियों से जूझ रहे लोग अपनी संपत्ति नहीं बेच पा रहे, जिससे उनके इलाज में आर्थिक दिक्कतें आ रही हैं।
- व्यावसायिक और विकास कार्य ठप: आवासीय और व्यावसायिक भवनों के निर्माण पर रोक की वजह से लोगों का रोजगार प्रभावित हो रहा है, और विकास कार्य ठप पड़े हैं।
कांग्रेस नेताओं ने राज्य सरकार पर जनविरोधी नीतियां अपनाने और प्रशासनिक लापरवाही का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि यदि शीघ्र ही इस क्षेत्र को फ्रीज जोन से मुक्त नहीं किया गया, तो जनता के साथ मिलकर बड़े स्तर पर आंदोलन किया जाएगा।
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि राज्य सरकार को पहले सघन होमवर्क करना चाहिए था, फिर इस क्षेत्र को फ्रीज जोन घोषित करना चाहिए था। अब सरकार के इस फैसले की वजह से दो साल से लोग परेशान हैं, और यदि जल्द कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया, तो क्षेत्रीय जनता उग्र आंदोलन के लिए बाध्य होगी।
अब देखना यह होगा कि राज्य सरकार इस मुद्दे को कितनी गंभीरता से लेती है और इसे हल करने के लिए क्या कदम उठाती है।