सावन में शिव भक्ति का ज्वार, बारिश के बीच श्रद्धालुओं की कतारें

हरिद्वार : सावन का महीना, शिवभक्तों के लिए आस्था का महासागर बनकर उमड़ता है। आज सुबह से हो रही लगातार बारिश भी श्रद्धालुओं के उत्साह को कम नहीं कर पाई। जगह-जगह शिवालयों में जलाभिषेक के लिए भक्तों की लंबी कतारें लगी हैं। भक्ति में भीगते तन और तपते मन के साथ श्रद्धालु ‘हर हर महादेव’ के उद्घोष करते हुए शिव को जल अर्पित कर रहे हैं।

उत्तराखंड में सावन के महीने में महादेव के कई प्रसिद्ध मंदिरों में विशेष भीड़ उमड़ती है। इनमें सबसे विशेष स्थान रखता है कनखल का दक्षेश्वर महादेव मंदिर, वह पवित्र भूमि जहां भगवती सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में अपमान सह न पाकर आत्मदाह किया था।

कनखल, ब्रह्मापुत्र दक्ष की प्राचीन राजधानी, महज एक तीर्थ नहीं बल्कि शिव और शक्ति की अनंत गाथा का साक्षात केंद्र है। यही वह भूमि है जहाँ दक्ष ने विराट यज्ञ का आयोजन किया, जहां भगवती सती ने अपनी देह त्याग दी, और जहां से पृथ्वी पर 52 शक्तिपीठों का निर्माण हुआ।

कहा जाता है कि इस यज्ञ भूमि पर 84 हज़ार ऋषि, विष्णु, ब्रह्मा और असंख्य देवता पधारे थे। और स्वयं महादेव, सती से विवाह करने यक्षों, गंधर्वों और किन्नरों के साथ यहां पहुंचे थे। अब श्रावण में, हर साल, शिव ‘दक्षेश्वर’ रूप में कनखल लौटते हैं, अपने वचन को निभाने।

यह मायानगरी केवल धार्मिक आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि ब्रह्मांडीय संतुलन का आधार है। यहीं पर ऋषियों ने पहली बार अरणी मंथन से यज्ञाग्नि उत्पन्न की थी। कनखल में शिव का केंद्र आकाश में माना जाता है, जबकि महामाया का शक्तिपीठ पाताल में स्थित है। यही वह अदृश्य शक्ति है जिससे ब्रह्मांड की डोर बंधी हुई है।

आज हो रही निरंतर वर्षा को श्रद्धालु शिव का आशीर्वाद मानते हैं। मंदिरों के प्रांगण में नंगे पैर खड़े श्रद्धालु, जल, दूध और बेलपत्र अर्पित कर महादेव से अपने सुख-शांति की कामना कर रहे हैं। भक्त मानते हैं कि सावन में किया गया एक जलाभिषेक, सैंकड़ों जन्मों के पापों का क्षालन करता है।

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