नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट के एक आदेश को खारिज करते हुए कहा है कि किसी व्यक्ति को ‘मियां-तियान’ और ‘पाकिस्तानी’ कहने मात्र से उसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का मामला नहीं बनता।
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि भले ही ये बयान अनुचित हैं, लेकिन यह भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 295A के तहत धार्मिक भावनाएं आहत करने के दायरे में नहीं आते।
क्या था मामला?
अपीलकर्ता पर आरोप था कि उसने एक व्यक्ति को ‘मियां-तियान’ और ‘पाकिस्तानी’ कहकर उसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई। इस मामले में झारखंड हाईकोर्ट ने अपीलकर्ता के खिलाफ कार्रवाई को बरकरार रखा था, जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “निस्संदेह, दिए गए बयान अनुचित हैं, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है कि केवल इन्हीं शब्दों के प्रयोग से धार्मिक भावनाएं आहत हो गईं।”
इसके अलावा, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि आरोपी के कृत्य से शांति भंग होने की कोई संभावना नहीं थी और न ही उसने किसी लोक सेवक के खिलाफ कोई हमला या बल प्रयोग किया था। इसलिए, उस पर IPC की धारा 353 (लोक सेवक को कर्तव्य निर्वहन से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल प्रयोग) भी लागू नहीं होती।
फैसले का महत्व
यह फैसला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धार्मिक भावनाओं के बीच संतुलन को स्पष्ट करता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह संदेश दिया कि हर आपत्तिजनक टिप्पणी को अपराध नहीं माना जा सकता, जब तक कि वह स्पष्ट रूप से कानून के उल्लंघन की श्रेणी में न आए।