होली की रंगीन बयार आने को है, पर इस बार मौसम का मिजाज कुछ और ही कहानी कह रहा है। फरवरी का महीना, जो आमतौर पर ठंडक का एहसास कराता है, इस बार तपिश से भरपूर रहा। यूरोपीय संघ की कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (C3S) के अनुसार, फरवरी 2025 वैश्विक तापमान के लिहाज से तीसरा सबसे गर्म महीना रहा, जिसमें औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.59 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया।
भारत में भी स्थिति कुछ अलग नहीं रही। फरवरी 2025 ने पिछले 125 वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ते हुए सबसे गर्म और शुष्क महीना दर्ज किया गया। विशेषज्ञ इस असामान्य गर्मी और वर्षा की कमी को जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव से जोड़ते हैं।
इस बढ़ती गर्मी का असर सिर्फ पर्यावरण तक सीमित नहीं है; यह हमारे स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव डाल रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, जलवायु परिवर्तन मानव स्वास्थ्य के लिए एक मौलिक खतरा प्रस्तुत करता है, जो शारीरिक पर्यावरण के साथ-साथ प्राकृतिक और मानव प्रणालियों के सभी पहलुओं को प्रभावित करता है।
बढ़ते तापमान के साथ, हीटवेव, बाढ़, सूखा और जंगल की आग जैसी घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि हो रही है, जिससे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ रही हैं।
जलवायु परिवर्तन के इस दौर में, हमें न केवल पर्यावरण की सुरक्षा के लिए, बल्कि अपने स्वास्थ्य की रक्षा के लिए भी सतर्क रहना होगा। यह समय की मांग है कि हम सामूहिक रूप से कदम उठाएं और इस चुनौती का सामना करें, ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित और स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित किया जा सके।